न जाने हैं किस पर हैं मेहरबान ये रातें।

कोई है सोया और खोया सपनों में,
कोई है ढूंढता अपनों को अपनों में,
किसी की आंखों में नींद नहीं है,
कोई लम्बी नींद ले रहा कफनों में।
हर सुख-दुःख से हैं अनजान ये रातें।
न जाने किस पर हैं मेहरबान ये रातें।
किसी को किसी की याद आ रही है,
एक-एक लम्हे के बाद आ रही है,

कोई तो हो जो सुने इनकी भी,
दिल के कोने से फ़रियाद आ रही है।
कितनों के दिल की हैं अरमान ये रातें। न जाने...
कोई किसी के ग़म में जी रहा है,
चुपके से आंखों के आँसू पी रहा है,
किसी की बेरूखी से दिल के टुकड़े हुए,
उन्ही टुकड़ों को कोई सी रहा है।
बहुतों को लगती हैं बेईमान ये रातें। न जाने...
एक मैं हूँ जो आधी नींद में हूँ,
दुनिया को जीत लूँगा इसी जिद में हूँ,

मुझको है अपनी कामयाबियों का इंतज़ार,
बस उन्हीं, हाँ उन्हीं की उम्मीद में हूँ।
काश! हो जाएँ मेरी निगेहबान ये रातें।
हो जाएँ मुझ पर मेहरबान ये रातें।
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