गुरुवार, 12 मई 2011

आओ चलते हैं...

आओ चलते है,


उन लम्हों के दरम्याँ,

जब एक ‘कट्टी’ से,

विराम लग जाता था,

दोस्ती पर,

और ‘मिट्ठी’ उस विराम को

कहीं दूर फेंक देती थी।

जब पन्नों के बीच,

मोर के पंख पाले जाते थे,

इस उम्मीद में,

कि ये दो के चार हो जाएँगे।

जब कच्ची अमिया,

जीते हुए कंचे,

सबसे बड़ी पूँजी होती थी।

जब पापा डाँट सकते थे,

बेझिझक,

और अम्मा दुलारती थीं।

चलें वहीं जहाँ आँखों में,

कुछ मासूम से सपने पलते है,

आओ चलते हैँ।

सुनना कभी तुम भी....

कभी खामोशियों को सुनना,


वो सब कह देंगी,

जो कभी मैं,

तुमसे न कह पाया।

तुम्हारी एक झलक के लिए,

सदियों के इन्तजार की,

चश्मदीद गवाह हैं ये।

तुम्हें रूबरू देखकर,

जब-2 ये दिल धड़का है,

दिल की हर धड़कन को,

तब-2,

इन खामोशियों ने,

बहुत गौर से सुना है।

बहुत मुश्किल है मेरे लिए,

तुमसे कुछ भी कहने को,

शब्दों को चुनना।

इसीलिए,

कभी खामोशियों को सुनना।

शनिवार, 7 मई 2011

मेरी अम्मा....

जब भी किसी मोड़ पर मैं हूँ हारा,

हरदम मिला मुझको उसका सहारा।

हो कैसे सकती हैं मुश्किल ये राहें,

मेरे संग हरपल हैं उसकी दुआएँ।

जिसकी वजह से मेरा निशां है।

वो मेरी माँ है।।।।।


बड़े प्यार से मेरे सर को दबाती।

बालों में मेरे वो उँगली फिराती।

लगाती मेरे माथे पे काला टीका।

नजर से बचाने का उम्दा तरीका।

धरती पे मेरे लिए वो खुदा है।

वो मेरी माँ है।।।।



उसको पता है मेरी हर जरूरत।

अम्मा हमारी ममता की मूरत।

फिर भी थोड़ा उससे नाराज हूँ मैं।

फितरत से शायद दगाबाज हूँ मैं।

माँ जैसी चाहत मुझमें कहाँ है?

वो मेरी माँ है।।।।



करता तुझे याद दिल्ली में आकर।

रोता हूँ तकिये में चेहरा छुपाकर।

कर देती है मुझको मजबूर दिल्ली।

घर से मेरे है बहुत दूर दिल्ली।

मगर साथ मेरे तेरी दुआ है।

तू मेरी माँ है।।।।।

शुक्रवार, 6 मई 2011

आँखों में जैसे हजारों ख्वाब झिलमिला गये।


बोलिए हम क्या करें जो आप याद आ गये।


बोतल में उतरे आप तो ऐसा कुछ हुआ असर,

जो कभी उतरे ना वो खुमार बन कर छा गये।


मशविरा है मेरा कि परदे में तुम निकला करो,

देखो तुमको देखकर ये फूल भी शरमा गये।

वैसे तो बिन तुम्हारे भी ये जिन्दगी हसीन थी,

तुम मिले तो जिन्दगी को और हसीं बना गये।


महफिल में मुस्कुरा के देखा जो तुमने मुझे,

गैरों की मैं क्या कहूँ यारों को भी जला गये।