हिन्दुस्तान के सैकड़ों छोटे शहरों की तरह ही है वो शहर। एक शहर, जिसे गोमती नदी दो बराबर हिस्सों में बांटती है। एक शहर, जो हिंदू-मुस्लिम एकता की मिसाल है। एक शहर, जहाँ मैं पला-बढ़ा, जवान हुआ। एक शहर, जिसने मुझे प्यार दिया, जिसे मैंने प्यार किया। एक शहर, जो मेरी जन्मभूमि न होते हुए भी अपनेपन का एहसास देता है। एक शहर, जिसे हम कभी शिराज-ए-हिंद कहते थे। एक शहर, जिसे हम आज जौनपुर कहते हैं।
इसी जिंदादिल शहर के लिए मेरी छोटी सी भेंट.......
वो गलियां, वो कूचे, वो डगर देखने।
कभी आना तुम मेरा शहर देखने।
यादें जो हैं जिंदा मेरी धडकनों में,
उन्ही यादों को बस एक नज़र देखने। कभी आना तुम...
अंगडाई सुबह की, मस्ती शाम की,
हँसी है कितनी वहाँ दोपहर देखने। कभी आना तुम...
दास्ताँ है सिफर से शिखर तक की ये,
रहा फिर भी अधूरा वो सफर देखने। कभी आना तुम...
न हिंदू, न मुस्लिम हैं हिन्दुस्तानी यहाँ,
मोहब्बत की राह के हमसफ़र देखने। कभी आना तुम...
एक दरिया यहाँ शहर के बीचों-बीच,
गोमती की उठती-गिरती लहर देखने। कभी आना तुम...

तेरी राहों में फूल बिछाएगा 'विनीत',
जब भी आओगे तुम उसका घर देखने। कभी आना तुम...
विनीत कुमार सिंह
इसी जिंदादिल शहर के लिए मेरी छोटी सी भेंट.......

वो गलियां, वो कूचे, वो डगर देखने।
कभी आना तुम मेरा शहर देखने।
यादें जो हैं जिंदा मेरी धडकनों में,
उन्ही यादों को बस एक नज़र देखने। कभी आना तुम...
अंगडाई सुबह की, मस्ती शाम की,
हँसी है कितनी वहाँ दोपहर देखने। कभी आना तुम...
दास्ताँ है सिफर से शिखर तक की ये,

रहा फिर भी अधूरा वो सफर देखने। कभी आना तुम...
न हिंदू, न मुस्लिम हैं हिन्दुस्तानी यहाँ,
मोहब्बत की राह के हमसफ़र देखने। कभी आना तुम...
एक दरिया यहाँ शहर के बीचों-बीच,
गोमती की उठती-गिरती लहर देखने। कभी आना तुम...

तेरी राहों में फूल बिछाएगा 'विनीत',
जब भी आओगे तुम उसका घर देखने। कभी आना तुम...
विनीत कुमार सिंह
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें