बुधवार, 11 नवंबर 2009

खामोशी...



खामोशियाँ भी बोलती हैं,


हाँ, मैंने सुना है,


अपने अकेलेपन में,


किसी गरीब की आंखों में झाँककर तो देखो,


कुछ न कहकर भी सब कुछ कह देती हैं,


अभावों से भरा जीवन उसका,


शायद शब्दों का भी अभाव,


तभी तो उनकी आँखें ही बोलती हैं,


होठों से तो निकलती है सिर्फ़ चीख,


जिसकी गूँज शायद ही कोई सुनता है,


कोई कैसे चीख सकता है खाली पेट,


इसलिए शायद ये खामोश रहते हैं।








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