रविवार, 25 अप्रैल 2010

अब तो हमें जाना पड़ेगा (भाग-5)


ये तस्वीर अपने अन्दर एक कहानी समेटे हुए है। एक कहानी जो पिछले दो सालों से लिखी जा रही थी। इस कहानी को कई लोगों ने मिलकर लिखा है। कुछ लोग इस तस्वीर में नज़र आ रहे हैं और कुछ लोग इस इबारत में हाथ बंटाकर यहाँ की दुनिया से बाहर जा चुके हैं। हम भी कुछ दिनों में ऐसे ही चले जायेंगे पर ये कहानी आगे बढ़ती रहेगी। इस विश्वविद्यालय के अन्दर एक डिपार्टमेंट में एक छोटी सी दुनिया बसती है। उसी दुनिया की कहानी कह रही है ये तस्वीर। इस कहानी में प्यार है, ख़ुशी है अपनापन है तो गम भी है , जुदाई भी है। कुछ हँसते हुए चेहरे हैं तो कुछ उदास निगाहें भी हैं। दो साल तक साथ रहे ये हमसफ़र अब जुदा होने को हैं।
अब बस कुछ ही दिन और रह गए हैं, फिर सब अपने अपने रास्ते चल देंगे। सबने यहाँ आने से पहले कुछ सपने संजोये होंगे, इश्वर उन सपनों को शक्ल दे, उन्हें हकीक़त की ज़मीं बख्शे। आज मैं कोई नई बात नहीं कहने जा रहा। इम्तेहान चल रहे हैं और हमलोग आखिरी बार कोई इम्तेहान साथ-साथ दे रहे हैं। दो साल हंसी ख़ुशी से गुजर गए और आगे भी गुजरते रहेंगे। कॉलेज के दिन ज़िन्दगी के सबसे हसीं दिन होते हैं, सबसे खुशनुमा दिन। अब हमारी ज़िन्दगी के सबसे उद्देश्यपूर्ण दिनों की शुरुआत होने वाली है। इन्हीं दिनों के लिए हमने यहाँ तक का सफ़र तय किया था। माफ़ करना दोस्तों, उपदेश कुछ ज्यादा ही हो गया।

जब भी कभी टाइपिंग के लिए ये उँगलियाँ कीबोर्ड की तरफ बढ़ेंगी , तुम बहुत या आओगे अमित। जब कभी कोई लड़की एक ही सांस में पूरी बात कहने को बेताब दिखेगी तो आकांक्षा को याद आने से कैसे रोक पाऊंगा? और कस्तूरी तो मेरी सबसे अच्छी दोस्तों में से है, उसे कैसे भूल सकता हूँ। जितने लोग उतनी यादें, जितनी याद आएगी दिल उतना ही खुश होगा, रोयेगा, मुस्कुराएगा या आंसू बहायेगा। पायल, मैं जाने से पहले स्लिम तो नहीं हो पाया पर अब जब भी ये पैर ट्रैक पर दौड़ेंगे तो याद तो आओगी ही तुम। शायोंती जैसी चुलबुली लड़की को कोई कैसे भूल सकता है?

राजनाथ की अदाएं, आशीष की मिमिक्री, धीरज द्वारा फ्री में डाइटिंग कराना और कन्हैया का लहराना। सब तो मसाला है इस डिपार्टमेंट में। किस-किस की चर्चा करूँ? कुछ तो ऐसे हैं जिनके बारे में लिखने के लिए जगह कम पड़ जाए। सभी के साथ तो ऐसा ही है। ज़िन्दगी का एक चक्र यहाँ पूरा होता है। काफी किस्से- कहानियां हैं। सब एक दूसरे को इन्ही प्यारे लम्हों, शरारतों, नोंक-झोंक में सलामत रखें, यही दुआ है।
आमीन।

मंगलवार, 20 अप्रैल 2010

धीरज तेरी अजब कहानी

धीरज तेरी अजब कहानी,
विभाग के हर जन ने तरह- तरह से जानी, कोई कहे एनोच्य्क्लोपेडिया, कोई कहे DATAMAN
दो साल बस बहस ही होता रहा की धीरज का उद्गम स्थल कहा है,
मतभेद की सीमा टूटी, किसी ने हड़पा का बताया किसी ने मोंज्दाड़ो,
पर धीरज ने कोशिश की मतभेद हो ख़तम करने की स्वीकार किया है जन्म प्रस्तेर युग का है,
पर भला बिवाग में विवाद कहा कम होने वाला था,
धीरज ने विवाद सुलझाने की कोशिश की,
लडकिय थी परेसान, हैरान कि इतनी मेहनत के बावजूद उनका भार क्यों बाद रहा है,
धीरज ने खोजा उपाय टिफिन उनकी कि अपने बस आज हालत है कि धीरज का भार बढ़ा और लड़किया हुई khus कि वोह रख पाई फिगेर मेन्टेन, आगे का धीरज कथा अगले अंक में
नमस्कार

राही बन जायेंगे पर सबको भूल न पाएंगे

जीवन के सफ़र में चलते रहना मजबूरी है,
यह मजबूरी १० दिन बाद हमारे पास भी आयेगी
वक्त की इस कसमकस में हमे भी दूर होने का आदेश सुनाएगी ,
पर क्या सफ़र में चलते रहने से राहो में मिलने वाले बिछड़ जायेंगे ?,
क्या आँखों के अश्क यूँ ही निकल आएंगे ,
मैंने हरगिज ऐसा तो सोचा नहीं था ,
पर वक़्त से भला कौन जीत पाया है,
पर हम जीत कर दिखायेंगे,
इन दूरियों के बावजूद सभी को एक दूसरे के दिलो में बसायेंगे,
बक्त कितना भी जुल्म करे, उसे हम हस कर सह जायेंगे,
आखिर दो बरसो का यह तजुर्बा यु ही तो नहीं भूल जायेंगे,
अंत बस यही राही बन जिन्दगी के सफ़र पर जायेंगे , पर सबको भूल न पाएंगे।

सोमवार, 5 अप्रैल 2010

दाने

भींच रखी है मुट्ठी मैंने,
वक़्त को फिसलने से रोकने को,
दाने दाने कर वो फिर भी खिसक रहा,
उड़ उड़ के साँसों के संग,
आँखों में है धस रहा

शनिवार, 3 अप्रैल 2010

नशा

मैंने तुझको देखा है जब से ,
कुछ खो गया है मुझसे ,
हर लम्हा तेरी तलब सी है ,
बदली नहीं है ज़िन्दगी ,
फिर भी अलग सी है.
 

शुक्रवार, 2 अप्रैल 2010

अब तो हमें जाना पड़ेगा (भाग-4)

अप्रैल वैसे तो पूरी दुनिया में मूर्ख दिवस के रूप में मनाया जाता है, लेकिन इस दिन को हमारे जुनिअर्स ने हम लोगों की विदाई का दिन चुनाउन्होंने एहसास करा दिया कि हम कशी हिन्दू विश्वविद्यालय परिसर में स्थित पत्रकारिता एवं जन सम्प्रेषण विभाग में कुछ दिनों के मेहमान हैंतरीका भी लाजवाब निकाला, हमें खिला-पिलाकर और ढेर सारा प्यार देकर हमें ये शिकायत करने का मौका ही नहीं दिया कि क्यों हमे यहाँ से अलग करने कि साजिश कर रहे होकोई बात नहीं, अगले साल तुम लोग भी जान जाओगे कि जुदा होने का गम क्या होता हैपिछले दो सालों में यहाँ पर जो प्यार मिला उसकी आशा नहीं थीकुछ खट्टी यादें भी हैं लेकिन जब तक खट्टा चखा जाए मीठे को चखने का पूरा आनंद नहीं मिलतायहाँ कि सबसे अछि बात ये रही कि हमने अपनी जिन्दगी के दो साल ...पूरे दो साल हँसते खेलते गुजारे हैंकिसी कि जिंदगी में दो दिन ऐसा गुजरता है तो वो खुशनसीब हैये बातें मेरे दिल से निकल रही हैं और दिल हमेशा ही जोश में कुछ ज्यादा बोल जाता हैकुल मिलकर बस यही कहना है कि दोस्तों मेरी जिंदगी को दो हसीं साल देने के लिए मैं आपको शुक्रिया अदा करता हूँ

अब कुछ दिनों के बाद हम सब अपने-अपने रास्तों पर चल पड़ेंगेकई ऐसे लोग भी होंगे जिनसे अब शायद ही कभी मुलाकात का मौका मिलेकई लोग मिलते रहेंगेलेकिन एक जगह है जहां सब आबाद रहेंगे...एक दूसरे के दिलों मेंऊपर वाले ने ये कितनी अजीब चीज़ हमारे सीने में डाल दी है कि हर ख़ुशी और गम के मौके इसमें सेव हो जाते हैं और हम चाहे भी तो इन्हें डिलीट नहीं कर सकतेकल तक हम जिन्हें जानते नहीं थे आज वो हमारे दिलोदिमाग पर अपनी छाप छोड़ चुके हैंहो सकता है कि कुछ सालों के बाद ये यादें कुछ धुंधली पड़ जाएँ पर इनके अक्स का मिटना तो नामुमकिन हैतुम सब याद आओगे दोस्तों, बहुत याद आओगे

अब कुछ बातें फेअरवेल कीकल हमलोगों ने खूब एन्जॉय कियाइसके लिए मैं अपने जुनिअर्स का शुक्रगुजार हूँ कि उन्होंने हमें इतनी इज्ज़त बख्शी, इतनी खुशियाँ दीं कि उन्हें समेटना मुश्किल हो रहा थाइन ढेर सारी खुशियों के लिए, प्यार के लिए, सम्मान के लिए और जिंदगी में एक बेहद ही खूबसूरत दीं जोड़ने के लिए मैं आप सबको धन्यवाद करता हूँकल हमारे क्लास कि लडकियां साडी पहनकर आई थीं और खुदा कसम बहुत ही खूबसूरत लग रही थीतो मैं अपने जुनिअर्स का इसलिए भी शुक्रगुजार हूँ कि उन्होंने ऐसा ड्रेस कोड बनायाजुनिअर्स ने तस्वीरों को गाने के साथ बहुत ही खूबसूरत ढंग से सजाया थाखाना भी बहुत लाजवाब थाअमित गौरव ने शम्मी कपूर और हेलन कि याद एक साथ दिला दी, आशीष ने एक अतुलनीय शख्स कि नक़ल उतारी और राघवेन्द्र ने दिल कि बातें कहीं ....ये सब देखकर अच्छा लगामुरली ने भी तस्वीरों को काफी काफी इमोशनल तरीके से सजाया थावहां बैठे सभी लोग रो रहे थे, फर्क सिर्फ इतना था कि कुछ की आँखें रो रही थीं और कुछ का दिल रो रहा थाअच्छा आज के लिया बस इतना ही... बाकी फिर कभी....

अज़ीम लोग हैं इज़हार गम नहीं करते,
दिल तो रोता है आँखें नाम नहीं करते...

गुरुवार, 1 अप्रैल 2010

राही

लफ़्ज़ों के समंदर का राही हूँ,
कागज़ पे बिखरी स्याही हूँ,
हूँ अक्स अपने ही अरमानों का,
कुछ उम्मीदों का साकी हूँ.

खेलते हैं जज़्बात मेरे सीने में,
ठहरे हैं अश्क आँखों के ज़ीने में,
है जो ये जाल साँसों का,
कुछ निकला हूँ उससे कुछ बाकी हूँ.