रविवार, 2 मई 2010

वे छह घंटे

एक मई के शाम को ६ बजे से रात के बारह बजे तक का समय मेरे जीवन के सबसे हसीं पालो में है। अगर कोई मुझे फिर से ये छह घंटे दे दे और बदले में जीवन के साठ वर्ष ले ले तो मै उसे खुशी से दे दूंगा। आप सोचेंगे की आखिर इन छह घंटे में ऐसा क्या हुआ? कुछ वनारसी ये सोचेंगे की उस समय तो बनारस में आंधी आई थी और ओले पड़े थे पर जनाब भला ऐसा समय भी याद किया जाता है । मै तो बात कर रहा हूँ जन्सम्प्रेषण बिभाग में पढने वाले छात्रों का, क्लास की प्यारी आकांशा के घर गेट टूगेदर का। यह समय मेरे जीवन के सबसे हसीन पल है। इस छेह घंटे में मैंने जीवन के आठ सालो की उदासी को छोड कर दिल की गहराई से जीवन की खुशियो को जिया। यह वोह पल था जब मै अंटी से मातृत्व पाया बुवाजी से अपने घर में मिलने वाला दुलार पाया , मुझसे पहले मेरे पेटू होने की चर्चा से गुस्सा नहीं बल्कि अपने भाई बहनों ,घर में परिवार में होने वाला नुरा- कुस्ती वाला खुशी का अनुभव हुआ । बनारस की इन तंग गलियों में दिल की विशालता नज़र आई । दोस्तों के आँखों में इस पल को समेट लेने की चाहत नज़र आई। उन आँखों में इस पल को समेटने की ललक के साथ बिछड़ने के दर्द को आँखों की पलकों में छुपा कर मुस्कुराने की मजबूरी भी दिखाई दी। साथ में भविष्य में मिलने की कसम भी सभी ने खाई। पर कुछ पलकों ने आंसू को छुपाना गवारा नहीं समझा पाएल के जाते वक़्त आकांशा ने उसे बहने दिया बाकि ने दर्द की मुस्कराहट से कोरम पूरा किया कि जाने वाले को हंस कर विदा किया जाये। मै भी वहा मौजूद था मुझे तो यह घटना तो बस काफिले कि शुरुवात लगी आखिर मै भी तो उस काफिले में चलने वाला मुसाफिर हूँ। कल मुझे भी तो उस दौर से गुजरना है। इन तमाम बिरोधावास के बावजूद सभी इस पल को पूरी तरह से जी लेना चाहते थे । सभी ने उस पल को जिया । इस पल को यादगार बनाने के लिए और यह अवसर उपलब्ध कराने के धन्यवाद् आकांशा और सम्पूर्ण आकांशा परिवार जिनोहोने अपना प्यार हम सब को दिया।

अक्की की दावत

कल हम लोग आकांक्षा के घर पर थे। एक आखिरी पार्टी के लिए जो हम लोग , हम सब लोग साथ मिलकर मनाने वाले थे। काफी अच्छा लगा वहां जाकर। अब तो बनारस का काफी कुछ याद आएगा। अस्सी घाट, कशी हिन्दू विश्वविद्यालय, बिरला हॉस्टल और आकांक्षा का घर भी। पहली बार यहाँ मैं किसी दोस्त के घर गया था। वहाँ मुझे महसूस ही नहीं हुआ कि मैं कहीं किसी और के घर आया हूँ। एकदम पारिवारिक माहौल था। वहाँ हम लोगों ने डांस (इस चीज में मैं काफी कमजोर हूँ) किया, खूब एन्जॉय किया। उसके बाद सभी लोगों ने साथ मिलकर खाना खाया। बहुत ही अच्छा लगा यह सब देखकर। आकांक्षा तो एकदम परेशान थी कि किसको कितना खिला दें। ये लड़की वहाँ भी परेशान थी। आंटी और अंकल दोनों लोग बहुत ही प्यार से मिले। और हाँ, आकांक्षा का छोटा भाई मानु, उसको तो शायद ही कभी भूल पाऊं। स्मार्ट बन्दा है। कुल मिलाकर बस यही कहना है कि कल, १ मई २०१० का दिन काफी यादगार गुजरा। आकांक्षा, हम आपको बनारस कि खूबसूरत यादों में एक और हसीं दिन जोड़ने के लिए शुक्रिया कहते है। आपका ये दोस्त आपकी सफलता के लिए हमेशा दुआ करेगा।
धन्यवाद

शनिवार, 1 मई 2010

.....और हम चल दिए ( अब तो हमें जाना पड़ेगा...)

जुगनू कोई सितारों की महफ़िल में खो गया,
इतना न कर मलाल जो होना था हो गया।
बादल उठा था सबको रुलाने के वास्ते,
आँचल भिगो गया कहीं दामन भिगो गया।


आज ये दिल सीने में एक नश्तर की तरह चुभ रहा है। ऐसा तो कुछ नहीं कि मैं कुछ छोड़ कर जा रहा हूँ। तमाम यादें, तमाम बातें इस दिल में हैं, शायद वहीँ से ये चुभन हो रही है। जिंदगी भी कितनी अजीब चीज है न। तड़के का मसाला हमेशा अपने साथ रखती है, कभी होठों पे मुस्कराहट सजाती है तो कभी आँखों को आंसुओ से सराबोर कर देती है। दोस्तों, तुम्हारी यादें इस दिल में बनी रहेंगी। हो सकता है वक़्त इन यादों को कुछ धुंधला कर दे मगर दिल से इनका अक्स, इनकी कशिश कैसे निकाल पायेगा। अब बस कुछ ही घंटों की बात है जब हम अपनी-अपनी मंजिल की तरफ कदम बढ़ाएंगे। भौतिक रूप से हम कितने भी दूर रहें पर कोशिश यही रहेगी कि दिलों के दरम्यान कभी कोई फासला न हो। आने वाला कल बेशक हमारा है और हम अपनी जिंदगी में कामयाबी की एक नयी इबारत लिखने जा रहे हैं। और बड़े-बड़े काम करने के लिए कुर्बानी तो देनी ही पड़ती है।

अब कुछ मेरे बारे में भी। मुझे पता नहीं कि मेरी मंजिल कहाँ होगी पर अपने सपनों को पूरा करने में मैं कोई कसर छोड़ने वाला नहीं हूँ। मेर्री आँखों ने बहुत ही बड़े-बड़े सपने देखे हैंऔर जब देख ही लिए हैं तो जी जान से लगना ही है। अब मैं अगले कुछ ही दिनों में इस देश कि राजधानी में अपनी जगह तलाशने के लिए निकल रहा हूँ। दुनिया बहुत बड़ी है और ऊपर वाले ने मेरे लिए भी कुछ न कुछ इंतजाम किया ही होगा। आखिर मैं भी उसी का बन्दा हूँ। थोड़ा संघर्ष तो होगा ही मगर जब माँ-बाप का आशीर्वाद, दोस्तों की दुआएं और उपरवाले का हाथ मेरे साथ हो तो संघर्ष करने में मजा तो आएगा ही।
आप लोगों ने पिछले दो सालों में जो मेरा साथ दिया, मेरी हौसला आफजाई की, उसके लिए मैं आपका तहेदिल से शुक्रगुजार हूँ। आप लोगों की दुआएं हमेशा मेरे साथ रहेंगी और आपका ये दोस्त हमेशा आपकी कामयाबी के लिए दुआ करेगा। हो सके तो मुझे भी अपने दिल में एक छोटी सी जगह दे दीजियेगा, बाकी उस जगह को तो मैं बड़ा कर ही लूँगा। थोडा नाराज़ तो होंगे आप पर क्या करूँ...... ऐसा ही हूँ मैं!

निकल चले हैं खुल्ली सड़क पर,
अपना सीना ताने।
मंजिल कहाँ? कहाँ रुकना है?
उपरवाला जाने।
बढ़ते जाएँ हम सैलानी,
जैसे एक दरिया तूफानी,
सर पे लाल टोपी रूसी,
फिर भी दिल है हिन्दुस्तानी।

अच्छा तो अब चलते हैं...............मिलते रहेंगे.