गुरुवार, 19 जनवरी 2012

इतना कायर हूँ कि उत्तर प्रदेश हूँ (भाग-1)


आगामी कुछ सप्ताह उत्तर प्रदेश और साथ ही साथ भारत के लिए राजनीतिक लिहाज से काफी महत्वपूर्ण हैं। संसार के सबसे बड़े लोकतंत्र के इस सबसे बड़े राज्य में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं। उत्तर प्रदेश की राजनीति में जातीय समीकरण, धनबल और बाहुबल किसी भी उम्मीदवार का भविष्य तय करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने लगे हैं। यही कारण हैं कि यहाँ की गरीबी और पिछड़ेपन के बारे में कोई भी पार्टी बात करती हुई नजर नहीं आती है। मुद्दे के नाम पर मुस्लिम आरक्षण, पिछड़े और दलितों को आगे लाने और वजीफा बाँटने जैसे वायदे शामिल हैं। मानव संसाधन से भरपूर यह प्रदेश आज इस कदर लाचार है कि एक गौरवशाली इतिहास होने के बावजूद आज यह पिछड़े राज्यों की सूची में नजर आता है।

आज उत्तर प्रदेश की विधानसभा में बैठने वाले माननीयों में एक बड़ी संख्या ऐसे लोगों की है जो कि ढेर सारे आपराधिक मामलों में वांछित हैं। अभी हाल तक मुख्यमंत्री मायावती के द्वारा भ्रष्टाचार के चलते दो दर्जन से ज्यादा मंत्री बर्खास्त किए गये। क्या मुख्यमंत्री के ज्ञानचक्षु ऐन विधानसभा चुनावों के वक्त ही खुले। उनके इन महान जनसेवकों ने मंत्री रहते हुए साढ़े चार सालों में कितने कारनामे किए, क्या ये बात उनको मालूम नहीं थी। मुख्यमंत्री ने भी अपने इस कार्यकाल में कौन सा परिवर्तन ला दिया। जो परिवर्तन मैंने नोट किया उसमें लखनऊ और नोएडा में पत्थरों के कुछ ज्यादा ही बुतों का दिखना शामिल था।

अक्सर लोग दलित उत्थान, पिछड़ों के विकास और मुस्लिम आरक्षण की बात करते रहते हैं। क्या उत्तर प्रदेश या फिर पूरे भारत में ही ब्राह्मण, राजपूत, कायस्थ और भूमिहार निवास नहीं करते। क्या ये जातियाँ सारे सुख भोग रही हैं। क्या हमारे हुक्मरानों को इनकी गरीबी और तंगहाली नहीं दिखती। भारतीय संविधान चीख-चीखकर सबके लिए बराबरी की बात करता है और थोड़ा आगे जाकर सामाजिक अन्याय का सबसे बड़ा उदाहरण प्रस्तुत कर देता है। उत्तर प्रदेश की तथाकथित अगड़ी जातियाँ न जाने कौन सा सुख भोग रही हैं कि उनका नाम भी इन चुनावों में, या फिर ऐसे राजनीतिक पर्वों में लेना ये दल महापाप समझते हैं।
                                                             ..........................आगे भी जारी रहेगा।

मंगलवार, 17 जनवरी 2012

जरा संभलकर

बेशक करो सवाल मगर जरा संभलकर।
अभी नशे में है सरकार जरा संभलकर।

गर सुर में न रहे तो पंजे में होगी गर्दन,
ये है दिल्ली का दरबार जरा संभलकर।

-विनीत कुमार सिंह