मंगलवार, 11 सितंबर 2012

जब वापस आया दोस्त मेरा

खोई हुई प्रेरणा अज जैसे वापस मिल गयी है...जिसने मुझे ये लिखने को प्रेरित किया है 

अमरुद के पेड़ की छांव में 
था हमारे स्कूल का चापाकल 
जहाँ जमघट लगती थी हर दोपहर 
सब बतियाते थे आज और कल 
कभी क्लास में कभी आंगन में 
करते थे हंसी ठिठोली हम 
सुबह से हो जाती थी शाम यहाँ
फिर भी पल लगते थे कम 
कई दोस्त कई सहेलियां 
सबकी थी कई कहानी 
बीतते  गए साल दर साल 
पर बदली न आदतें पुरानी
हुआ नए स्कूल में दाखिला 
जहाँ उदास था मन का घेरा 
दिन एक कोपले हरी हुई
जब वापस आया दोस्त मेरा
दिन बदले तारीखे बदली
बदलते गए साल दर साल 
बिछड़ गए सब दोस्त यही 
बदली सबकी जिंदगी की चाल
अब सबकी नयी थी दुनिया 
थे जीवन में कुछ लक्ष्य नए 
राग वही था तान वही थे 
बस बदली थी समय की लय
कई साल गुजरे सन्नाटे में 
न कोई पुराना था दोस्त यहाँ 
फिर मिल गया एक दिन यार मेरा 
जिसे ढूंढ़ रही थी कहाँ कहाँ 
नन्हे क़दमों की दोस्ती 
दूरी से सफ़र में बदल गए 
वो कल भी था वो अज भी है 
बस जीवन  में उसके मायने बदल गए