शुक्रवार, 13 नवंबर 2009

विकास या.....

विकास की इस दौड़ में,



हम अक्सर ये भूल जाते हैं,



कि हजारों की जिन्दगी में,



उजाला लाने के लिए,



हम,



लाखों की जिंदगी तबाह कर डालते हैं।



कौन सुनता है इनका दर्द,



इन विस्थापितों कि आवाज,



ये तो बहुद्देशीय परियोजनाओं के शोर में,



दब जाती हैं।



किसी शहर को,



जो दो सदियों से आबाद था,



उजाड़ कर हम विकास करते हैं।



गंगा कि धारा को रोककर,



हम देवताओं को भी अपनी ताकत का



अहसास कराते हैं।



नर्मदा से लेकर गंगा का विकास हो रहा है।



और जो बसे-बसाए शहर थे,



गाँव थे,



उनमें बसी लाखों जिंदगियों का



सत्यानाश हो रहा है।







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