शुक्रवार, 18 मार्च 2011

एक शहर, बनारस...(भाग-4)

जुलाई का पहला सप्ताह था शायद, मॆ अपनी कोचिंग में बैठा था जहाँ मैं बच्चों को अंग्रेजी पढ़ाने की कोशिश करता था। तभी मेरे ही साथ पढ़ाने वाली एक टीचर आयीं और बताया कि उनके भाई को बीएचयू में मास कॉम की काउंसलिंग के लिए बुलाया गया है। जब उन्होंने मेरे रिज़ल्ट के बारे में पूछा तो मैंने कहा कि मुझे तो कोई चमत्कार ही पास कर सकता है। फिर भी दिल की तसल्ली के लिए रिज़ल्ट देखने चला गया। चमत्कार हो गया था, मैंने किसी तरह दूसरी लिस्ट में जगह बना ली थी।



16 जुलाई 2008, इसी दिन बीएचयू में मेरी काउंसलिंग थी। डिपार्टमेंट में पहुँचा तो देखा कि लड़के तो काफी थे पर लड़कियां कम थीं। दिल बैठ गया कि क्या दो साल इन्हीं लोगों के साथ गुजारना पड़ेगा। लिस्ट देखा तो मन को कुछ ढांढस बंधा। लड़कों के नामों को दरकिनार कर जब लड़कियों का नाम पढ़ता तो हर नाम के साथ एक चेहरा सामने घूम जाता.........(इसके आगे की कहानी वास्तविकता के करीब और पात्रों के नाम पूरी तरह काल्पनिक हैं)

सलोनी, प्रियंका, रिचा, इशिता......नामों की लिस्ट अच्छी खासी लम्बी थी। वहां से पूरी तरह संतुष्ट होकर मैं आकर एक बेंच पर बैठ गया। मेरे बगल में एक मासूम से चेहरे का लड़का बैठा हुआ था। थोड़ी देर बाद मैंने उनसे बातचीत शुरू कर दी।
मैं- आप का शुभनाम?

वो- राजकुमार..और आपका?

मैं- विनीत कुमार सिंह..रहने वाले कहाँ के हैं आप?

राजकुमार- फैज़ाबाद।

इसी तरह बातचीत का क्रम चलता रहा और राज भाई बताते गये कि उन्होंने इलाहाबाद यूनिवर्सिटी से अंग्रेजी में एम. ए. किया है। वो काफी नज़ाकत से बात कर रहे थे और अपने दाहिने हाथ को एक खास अंदाज में घुमाते जा रहे थे। और मैं सोच रहा था कि वाकई में, ये पक्का फैजाबादी ही है। तभी एक और आवाज ने हम दोनों का ध्यान अपनी तरफ खींचा। सामने एक सांवला (गहरे रंग वाला सांवला) सा लड़का खड़ा था। पता चला कि भाई साहब का नाम भी कृष्णकांत है और झारखंड के रहने वाले हैं। राज भाई और मैं अपनी टूटी-फूटी अंग्रेजी छांट रहे थे और कृष्णकांत जी बस हमारा चेहरा देख रहे थे।

थोड़ी देर बाद हमें एक हॉल में ले जाया गया जो कि वास्तव में एक लाइब्रेरी थी। वहाँ और भी तमाम लोग बैठे हुए थे। सामने ही एक खूबसूरत लड़की बैठी हुई थी जो कि मेरी आँखों को तसल्ली दे रही थी। वैसे भी रेगिस्तान में कोई भी फूल खिला हो वो खूबसूरत ही लगता है। कुछ ही दूरी पर एक महारथी 10 बच्चों को ज्ञान की घुट्टी पिला रहा था। कृष्णकांत ने फरमाया कि वो पक्का पटना का होगा। बाद में उसकी बात कुछ हद तक सही भी निकली। वो लड़की भी बाहर जा चुकी थी। मैंने भी जल्दी से फार्म भरकर बाहर का रुख किया। किसी भी तरह से उसका नाम पता चल जाए इसी उम्मीद में चार्ट की तरफ फिर देखा। लेकिन कोई फायदा नहीं। थोड़ी देर बाद जब काउंसलिंग के लिए सबका नाम बुलाया जाने लगा तो उसका नाम पता चला- फाल्गुनी। किन्ना सोणा नाम था......

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