बुधवार, 16 मार्च 2011

एक शहर, बनारस..(भाग-1)

एक शहर, जिसका हर रूप इस देश के बाकी शहरों से काफी अलग है, जहाँ जिन्दगी काफी इत्मीनान से चलती है। दुनिया की आपाधापी से दूर इस शहर की अलग ही पहचान है। इस शहर ने मुझे तमाम खूबसूरत यादें दी हैं, कुछ बहुत अच्छे दोस्त दिए हैं। इस शहर को दुनिया बनारस के नाम से जानती है।




इ देखा बनारस हौ....
अभी कुछ दिन पहले अपने दोस्तों के साथ बनारस जाना हुआ। हम लोग बीएचयू के दीक्षांत समारोह में अपनी-2 डिग्रीयां लेने जा रहे थे। ऐसा लग रहा था जैसे वक्त फिर से पीछे की तरफ मुड़ गया है। बनारस रेलवे स्टेशन पर उतरते ही एक अजीब-सी खुशी का अनुभव हुआ। मैं फिर से उस शहर में था जहाँ मैंने अपनी जिंदगी के कुछ सबसे खूबसूरत दिन गुजारे थे। स्टेशन से बाहर निकलकर ऑटो पर बैठते ही अपने ढंग से चलते बनारस के दर्शन हो गये। कुछ चिर-परिचित संबोधनों ने ध्यान आकर्षित किया जो दिल्ली में बड़े ही कर्कश ढंग से कहे जाते हैं। हाँ, अब लग रहा था कि मैं बनारस में हूँ।





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