गुरुवार, 17 मार्च 2011

एक शहर, बनारस...(भाग-3)




11 मार्च 2011, एक ऐसा दिन जिसे मैं कभी भूल नहीं सकता। उस दिन बीएचयू के स्वतंत्रता भवन सभागार में हमारा दीक्षांत समारोह था। ये एक ऐसा पल था जिसकी अभिव्यक्ति शब्दों में नहीं की जा सकती। कम से कम मैं तो नहीं ही कर सकता। मेरे बैच के सभी लोग एक कतार में बैठे थे और मैं बस उन लम्हों को आत्मसात करना चाहता था। हम सभी ने उस पल के लिए काफी इन्तजार किया था। थोड़ी ही देर में हमारा नम्बर आया और हम सभी ने अपनी-2 डिग्री रिसीव की।

अभी उड़ान बाकी है....
अब शुरू हुआ फोटो सेशन। ये तो हमारे बैच का एक जरुरी हिस्सा ही है। कैमरा साथ में न हो तो हमारे बैच में मनाई गई कोई भी खुशी अधूरी ही लगती है। किस्म-2 के पोज बनाकर तस्वीरें उतारी गईं। लड़कियों ने हमेशा की तरह गुलशन में जाकर तमाम प्रकार की मुखमुद्राएं बनाकर तस्वीरें उतरवाईं। इसी में 2 घंटे से उपर का वक्त लगा। कुछ देर बाद खाना पीना हुआ और शाम को फिल्म देखने का प्रोग्राम बना। फिल्म का नाम था तनु वेड्स मनु। फिल्म देखने के कुछ देर बाद मैं जौनपुर जाने वाली बस में सवार था। मैं अपने परिवार से मिलने जा रहा था, बनारस पीछे छूट रहा था।

फ्लैशबैक-

अप्रैल 2008 का महीना, दिन मुझे याद नहीं। मैं बीएचयू मास कॉम का एंट्रेंस देने के लिए बनारस आया था। तब ये शहर मुझे कुछ खास नहीं लगा था। भारत के बाकी शहरों की तरह ही एक और शहर। हालाँकि इसके पहले भी मैं बनारस में कुछ अरसे के लिए रहा था, पर वो ऐसा समय था जब इस शहर में मेरे कुछ गिने-चुने दोस्त ही थे। वही समय था जब मैंने कुछ बड़ा करने का सपना देखना शुरु किया था। काशी हिन्दु विश्वविद्यालय में पढ़ने की तमन्ना भी उसी समय पैदा हुई थी।

एग्जामिनेशन हॉल के बाहर गाड़ियों की लम्बी कतारें लगी हुई थीं। एन्ट्रेंस गेट के बाहर लड़के और लड़कियाँ अंग्रेजी में करेंट अफेयर्स पर गंभीर बहस छेड़े हुए थे और यहाँ मेरा दिल बैठा जा रहा था। कहाँ ये तमाम बड़ी युनिवर्सिटीज़ के ग्रेजुएट्स और कहाँ मैं जौनपुर के तिलकधारी महाविद्यालय से बीए किया हुआ अर्ध-शहरी लड़का। फिर भी चमत्कार होने की उम्मीद में और हनुमान जी पर भरोसा करके एंट्रेंस एग्जाम देने बैठ गया। बेखुदी का आलम ये कि जहाँ पूछे गये 175 प्रश्नों में से 150 ही करने थे वहाँ मैंने सभी प्रश्न कर दिए। बाद में उनको मिटाने के लिए ब्लेड चलाया तो ओएमआर शीट में बड़ा-सा छेद हो गया। तब मुझे लगा कि अब तो यहाँ एडमिशन होने से रहा। बनारस को गुड बॉय कहने का पूरा इंतजाम हो गया था।



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