सोमवार, 22 मार्च 2010

चिराग तले अँधेरा



एक कहावत जो माँ से सुनी थी आज उसके अस्तित्व को महसूस किया है. इससे चिराग की बदकिस्मती कहिये या उसकी नाकामी.  वो चिराग जो अपनी सीमित शक्ति के बावजूद दूसरों को रास्ता दिखता है अपने अन्दर एक घना अँधेरा छुपाये होता है. ऐसा ही कुछ मै अपने आसपास देख सकता हूँ.  एक विभाग जो की अपने मूल रूप में सम्प्रेषण का घर है, वहां स्वयं सम्प्रेषण नामक वस्तु का आभाव है.  कोई किसीसे कुछ बोल नहीं सकता क्योकि विचारों की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता यहाँ लागू नहीं होती.  आप नहीं जान सकते की ऐसा क्यूँ है.  हाँ अगर आपने धरा के विपरीत जाने की कोशिश की तो मूह की खानी पड़ सकती है.  सारा सम्प्रेषण एक्मार्गीय है. खैर जैसे इस दुनिया की यानि की सम्प्रेषण की दुनिया की बाकि समस्याएँ दूर हुई है इस समस्या का भी कोई न कोई हल तो अवश्य होगा. जरुरत है उस चिराग को चिराग दिखाने की. 

2 टिप्‍पणियां:

  1. jisko dekhne ki ho adat ujale ko woh andhere ko nahi janta. jise dikhti ho manjil woh raste ki lambai ko nahi jhankta bas chalta jata hai. ki apne hai sikyat ,agar wajif bhi ho to chitkar karne se kya fyada. jab ghar se nikle ho fasana likhne to in timati shama aur us par jalte parwana ko dekh kar kya ghabrana. se

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  2. baat agar sirf mere raaste ki ho to chalta hai. ho agar kuch accha un kaanton ko hataane se to kya jaata hai. apna to kaam hi hai buraion se larna. to kitna accha hai ghar se shuru karna.

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