शनिवार, 20 फ़रवरी 2010

कुछ ढूंढ़ता है दिल..

न जाने मैं क्यूँ वो ग़ज़ल ढूंढ़ता हूँ।
कहीं खो गए हैं वो पल ढूंढ़ता हूँ।

धड़कता नहीं अब मेरा दिल भी शायद,
मैं अब धड़कनों की हलचल ढूंढ़ता हूँ।

संवारा था जिसको तूने जतन से,
वही रेत का मैं महल ढूंढ़ता हूँ।

कहाँ से थी आई, कहाँ को गयी तुम,
इन्हीं कुछ सवालों का हल ढूंढ़ता हूँ।

बताओ 'विनीत' वो फिर कब मिलेंगे,
बड़ी शिद्दत से आजकल ढूंढ़ता हूँ।


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