बुधवार, 17 फ़रवरी 2010

अब तो हमें जाना पड़ेगा....भाग-2

बहुत पहले उन क़दमों की आहट जान लेते हैं।
तूझे ऐ जिन्दगी हम दूर से पहचान लेते हैं।

फिराक गोरखपुरी साहब ने क्या खूबसूरत शेर लिखा है। जिन्दगी की हर आहट आदमी पहचान ही जाता है। हमने भी ये आहट पहचान ली थी बीएचयू आने से पहले। यहाँ पर मैंने कुछ महीने बड़ी ही खुशदिली से जिये हैं। मेरे सभी सहपाठी निहायत ही अच्छे साबित हुए। हर किसी ने अपनी अलग पहचान बनाई। आज डिपार्टमेंट जाना ख़ुशी देता है। शायद ये इसलिए भी है कि कुछ दिनों बाद ये बेफिक्री के दिन हवा हो जायेंगे। आज हम साथ-२ टिफिन बांटते हें ( उसमें हमारे एक खास दोस्त का हिस्सा सबसे बड़ा होता है, माफ़ करना यार )। अस्सी घाट कई बार हमसे गुलज़ार हुआ है। वीटी की चाय की दुकान पर जो चुस्कियां हम लेते हैं उसका मुकाबला कोई 5 स्टार होटल की चाय क्या करेगी?



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