रविवार, 14 फ़रवरी 2010

वक्त को किसने रोका है?

वक्त को किस ने रोका है,

दरिया में बहते पानी को किसने सोखा है,

मंजिल पर जाते राही को किसने रोका है,

मन को विचरित करने में भी कोई बाधा है,

क्या स्याम की राधा भी आधा है,

अगर ऐसा नहीं जग में , तो भला वक्त की चीत्कार क्यों?

आने वाले विरह वेदना से अभी तड़पने की चाहत क्यों,

विनीत तुम तो हो भविष्य वक्ता फिर , तुम में ये अधीर अकारत क्यों,

एक तुम से अनुरोध है, प्रीतम का बिरोध है,

फिर भी बात सुनाता हूँ , आग्रह किये जाता हूँ,

वक्त को यू गुजर जाने दो, भीम की चाए बिछड़ जाने दो,

क्योंकि नाश ,सृजन का द्वार है

बिछुदन के बाद ही मिलन है ,

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