शुक्रवार, 12 फ़रवरी 2010

अब तो हमें जाना पड़ेगा...भाग - 1

आजकल वक़्त कुछ जयादा ही तेज चल रहा है। बस कुछ दिन और....बस कुछ दिन और बाकी हैं इस शहर को छोड़कर जाने में। अच्छा लगा यहाँ पर आकर। दुनियादारी की भी थोड़ी-बहुत समझ आ गयी यारी के साथ। अब कुछ महीने ही तो बचे हैं जब मैं एक छात्र न रहकर देश का एक जिम्मेदार नागरिक बन जाऊंगा। कुछ ज्यादा ही तेज चाल हो गयी है समय की। बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय में पढने का सपना देखा था, पूरा हो गया। १६ जुलाई २००८ के विनीत और आज के विनीत में क्या फर्क आया और क्या शेष रहा ये तो मेरे आस पास रहने वाले लोग जानें। मेरे लिए तो दुनिया कुछ ज्यादा ही बदल गयी.....सपनों से भी ज्यादा।

हाँ...तो बात हो रही थी इस शहर को छोड़कर जाने की। इस शहर ने केवल मुझे ही अपने में नहीं बसाया, ये शहर भी मेरे अन्दर कहीं बस गया है। ऐसा सबके साथ होता है, हर इंसान के साथ। इस शहर ने जो भी मुझे दिया उसको एक नज्म में पिरोने की कोशिश कर रहा हूँ। उम्मीद है आप सबके सामने कल तक ला पाउँगा।

अब भीम की चाय भी मिलनी मुश्किल होगी। चाय तो मिलेगी ही भीम के दूकान से न सही किसी और के दूकान से, मगर वो दोस्त कहीं छूट जायेंगे जो आज साथ में चाय की चुस्कियां लेते हैं। चलो दोस्त भी मिल जायेंगे पर कुछ जाने पहचाने चेहरे, कुछ खास दोस्तों की कमी तो खलेगी ही...कुछ दिनों तक। कुछ और दोस्त भी शामिल हुए हैं इस जमात में। मुझसे तजुर्बे में एक साल पीछे हैं इसीलिए उनको हम जुनिअर्स कहते हैं। मस्तमौला हैं सबके सब, एक से बढ़कर एक। उनके साथ भी वक़्त बिताने में अच्छा लगता है...जानते हैं क्यों...वो मेरी कोई भी बात जल्दी काट नहीं सकते...बेचारे जुनिअर्स जो ठहरे। और अच्छे भी बहुत हैं। बाकी बातें बाद में दोस्तों क्योंकि अभी खाना भी खाना है, लिखने का बहुत मन कर रहा है इसीलिए फिर मिलते हैं.......

1 टिप्पणी:

  1. sach kehte ho vinit ab to jane ka waqt aa gaya ........khubsurat palon ke liye na jane kitna intazar karna padta hai aur jab ye khubsurat pal aate hai na jane kyun itni jaldi beet jate hain....kash ye waqt yahi tahar jata aur hum is khawbo ki duniya se kabhi bahar nahi jana padta!!

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