दिल्ली में वक़्त अच्छा ही बीत रहा है. काफी दोस्त बन गए हैं, बहुत से पुराने दोस्त भी मिल गए हैं. ये सभी लोग निहायत ही अच्छे हैं. लेकिन लाख टके का सवाल ये है कि मैं वैसा ही हूँ क्या जैसा पहले था? शायद नहीं. अब इसकी चिंता नहीं होती कि मेस चलेगा कि नहीं, बल्कि इस बात की चिंता होती है कि चावल का रेट क्या है और दाल कितनी महँगी हो गयी है. अब तो वो दिन आने से रहे जब वीटी पर चाय की चुस्कियां ली जाती थी.
तुम लोग भी कह रहे होगे कि साला जब से शुरू हुआ है रोये ही जा रहा है. यार, सच कह रहा हूँ, बड़ी तकलीफ होती है. जबसे यहाँ आया हूँ बस बनारस, बिरला हॉस्टल और बीएचयू की याद आ रही है. साला घर की उतनी याद नहीं आती. तुम सब भी महसूस कर रहे होगे. लेकिन एक बात तो है,मज़ा आ जाता है पुरानी बातें सोचकर. अमित ने पूरे दो साल मेरा असाईनमेंट टाइप किया, हर असाईनमेंट, और साला जिस चीज़ से भागता था वही करना पड़ रहा है. हाँ यार, दिन भर में करीब ३००० शब्द टाइप करने पड़ते हैं.
अब बाकी हाल-चाल बाद में. नींद आ रही है अब सोने जा रहा हूँ. बाकी सब तो ठीक है लेकिन कल सुबह ऑफिस भी जाना है. कोई क्लास तो है नहीं कि लेट हो जाओ तो चुपचाप जाकर बैठ जाओ. वैसे यहाँ भी कई बार लेट हो चूका हूँ पर बॉस भी मस्त मिले हैं, कुछ पूछते ही नहीं. बस मुस्कुरा कर गुड मोर्निंग कह दो, सब ठीक.
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