मंगलवार, 20 अप्रैल 2010

राही बन जायेंगे पर सबको भूल न पाएंगे

जीवन के सफ़र में चलते रहना मजबूरी है,
यह मजबूरी १० दिन बाद हमारे पास भी आयेगी
वक्त की इस कसमकस में हमे भी दूर होने का आदेश सुनाएगी ,
पर क्या सफ़र में चलते रहने से राहो में मिलने वाले बिछड़ जायेंगे ?,
क्या आँखों के अश्क यूँ ही निकल आएंगे ,
मैंने हरगिज ऐसा तो सोचा नहीं था ,
पर वक़्त से भला कौन जीत पाया है,
पर हम जीत कर दिखायेंगे,
इन दूरियों के बावजूद सभी को एक दूसरे के दिलो में बसायेंगे,
बक्त कितना भी जुल्म करे, उसे हम हस कर सह जायेंगे,
आखिर दो बरसो का यह तजुर्बा यु ही तो नहीं भूल जायेंगे,
अंत बस यही राही बन जिन्दगी के सफ़र पर जायेंगे , पर सबको भूल न पाएंगे।

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