मंगलवार, 26 जनवरी 2010

Ye tanha Ratain

कभी कभी ये रातें इतनी तनहा और उदास क्यूँ होती है
हर किसी को अपनी किस्मत से शिकायत क्यूँ होती है
दिल उदासी में जो रोना चाहे अगर
तो न जाने ये आंखें क्यूँ नहीं रोती हैं

जाने अनजाने इस जहाँ में किनारा छुट जाता है
रहें तो मिल जाती है मगर मंजिल रूठ  जाता है
रातों की नींदें चाहे कितनी भी गहरी हों
फिर भी पलकों से गिरकर हर सपना टूट जाता है

ठण्ड  के बादल अरमानो को सर्द कर जाते हैं
गर्म हथेलियों की छुअन को बर्फ कर जाते हैं
कुहासा  हटे या न हटे
जीवन की सुनी राहों में गर्द भर जाते हैं

इस  जिंदगी का भी खेल निराला है
बहुत मुस्किल से खुद को संभाला है
कुछ देर पहले  कोहरा घनेरा था
अब चारों तरफ उजाला है

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