कभी कभी ये रातें इतनी तनहा और उदास क्यूँ होती है
हर किसी को अपनी किस्मत से शिकायत क्यूँ होती है
दिल उदासी में जो रोना चाहे अगर
तो न जाने ये आंखें क्यूँ नहीं रोती हैं
जाने अनजाने इस जहाँ में किनारा छुट जाता है
रहें तो मिल जाती है मगर मंजिल रूठ जाता है
रातों की नींदें चाहे कितनी भी गहरी हों
फिर भी पलकों से गिरकर हर सपना टूट जाता है
ठण्ड के बादल अरमानो को सर्द कर जाते हैं
गर्म हथेलियों की छुअन को बर्फ कर जाते हैं
कुहासा हटे या न हटे
जीवन की सुनी राहों में गर्द भर जाते हैं
इस जिंदगी का भी खेल निराला है
बहुत मुस्किल से खुद को संभाला है
कुछ देर पहले कोहरा घनेरा था
अब चारों तरफ उजाला है
damn good!
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