मंगलवार, 12 जनवरी 2010

Vichaar

आज का दिन कितना मनहूस था? किसी ने बात करनी चाही, मगर दिल ने तो मानो हमें मजबूर कर दिया हो की किसी की सुनो भी मत। उस सुनसान से रस्ते पर मैं कहाँ चला जा रहा हूँ? क्या कोई मुझे बताएगा?

खैर छोड़िये, आपका क्या हाल है? क्या कहा अभी भी खैरियत मैं हैं? जिस दुनिया मैं हर पल हिंसा और द्वेष के शिकंजे बढ़ते जा रहे हों, वहां आप और मैं खैरियत मैं कैसे रह सकते हैं? अच्छा छोड़िये, इन बातों को। हम तो हैं ही सनकी।

मन मेरा भी है

मन आपका भी

मन सबका है पर

वो मन किसी का भी नहीं

इससे पहले की वो कुछ कहे, आप खुद अपने रस्ते हो लें। पता नहीं अगर एक बार चक्कर चल जाये, तो फिर कितने दिनों तक चलता रहे? प्रकृति का नियम है की किसी को वक्त से पहले उसका हिस्सा नहीं मिलता। मगर मैं प्रकृति का गुलाम हूँ क्या?

उन्मुक्त उड़ो आकाश में

लगाकर सपनों के पंख

रोक न पाए कोई

ऐसी हो tumhaarii udaan.

amen........................

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