गुरुवार, 10 नवंबर 2011

यूँ ही, अचानक...


कुछ यादें, कुछ चीजें,
आस-पास बिखरी हुईं,
अक्सर दिख जाती हैं,
यूँ ही,
अचानक।
उनका वजूद,
कुछ खास नहीं होता,
लेकिन,
उनसे जुड़ी होती हैं,
कई कहानियाँ,
कई किस्से।

एक लॉकेट,
जो किसी ने दी थी,
बहुत प्यार से,
जो आज वहाँ,
उस खूँटी पर पड़ी है।
या फिर ये टी-शर्ट,
और ये कॉफी मग,
सबके पीछे कई कहानियाँ है,
हर एक चीज में,
दिखता है अक्स,
किसी न किसी का।

और ये कलम,
इसे कैसे भूल सकता हूँ,
किसी ने दी थी,
बड़े प्यार से,
कुछ किस्से, कुछ नगमे,
ये भी तो लिख जाती है,
यूँ ही,
अचानक।

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