शनिवार, 7 मई 2011

मेरी अम्मा....

जब भी किसी मोड़ पर मैं हूँ हारा,

हरदम मिला मुझको उसका सहारा।

हो कैसे सकती हैं मुश्किल ये राहें,

मेरे संग हरपल हैं उसकी दुआएँ।

जिसकी वजह से मेरा निशां है।

वो मेरी माँ है।।।।।


बड़े प्यार से मेरे सर को दबाती।

बालों में मेरे वो उँगली फिराती।

लगाती मेरे माथे पे काला टीका।

नजर से बचाने का उम्दा तरीका।

धरती पे मेरे लिए वो खुदा है।

वो मेरी माँ है।।।।



उसको पता है मेरी हर जरूरत।

अम्मा हमारी ममता की मूरत।

फिर भी थोड़ा उससे नाराज हूँ मैं।

फितरत से शायद दगाबाज हूँ मैं।

माँ जैसी चाहत मुझमें कहाँ है?

वो मेरी माँ है।।।।



करता तुझे याद दिल्ली में आकर।

रोता हूँ तकिये में चेहरा छुपाकर।

कर देती है मुझको मजबूर दिल्ली।

घर से मेरे है बहुत दूर दिल्ली।

मगर साथ मेरे तेरी दुआ है।

तू मेरी माँ है।।।।।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें