भारतीय राजनीति का अंधा युग अब शुरू हो गया लगता है। जिस रफ्तार से नेताओं पर घोटाले, हत्या और यहाँ तक कि बलात्कार के आरोप लग रहे हैं, आम जनता का विश्वास लोकतंत्र से उठता जा रहा है। आज जहाँ भारत की आम जनता भ्रष्टाचार, महंगाई और बेरोजगारी जैसी तमाम तरह की समस्याओं से जूझ रही है, वहीं इस मुल्क के अफसरान और हुक्मरान दोनों ही बस अपनी तिजोरियाँ भरने में लगे हैं। अब तो किसी को याद भी नहीं होगा कि देश के इन कर्णधारों ने आखिरी बार जनहित में कब कोई फैसला लिया था। हाँ, इनके द्वारा अंजाम दी गई तमाम तरह की आपराधिक गतिविधियाँ अक्सर अखबार की सुर्खियों में अपनी जगह बना लेती है।
किसी भी राष्ट्र का भविष्य उसे चलाने वाले लोगों के चरित्र पर निर्भर करता है। भारत निश्चित रूप से इस मामले में सबसे गरीब देश है। आर्थिक विकास के आँकड़ों में हम भले ही दुनिया के अग्रणी देशों में शामिल हों, पर जमीनी हकीकत इससे काफी जुदा है। आज भी इस देश में कई इलाके ऐसे हैं जहाँ लोगों के लिए रोटी, कपड़ा और मकान जैसी मूलभूत सुविधाओं का होना ही सबसे बड़ा ख्वाब है। देश की राजधानी में ही तमाम ऐसी झुग्गियाँ हैं जहाँ आप छोटे बच्चों को भूख से बिलबिलाते देख सकते हैं। ऐसा लगता है कि आलीशान बंगले में रहने वालों के लिए ये सड़क पर घूमने वाले आवारा कुत्तों से ज्यादा कुछ नहीं हैं। काश कि लोग इनके खिलाफ कायदे से खड़े हों, और यकीन मानिए, मैंने भी अभी तक इनके खिलाफ कुछ नहीं किया है।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें