आज जबकि सब कुछ सीमाओं में बंधा हुआ है, एक आकाश ही है जो हमारी कल्पनाओं को पर लगाता है। इस खुले आसमान में उड़ान भरने के लिए आपका स्वागत है।
बुधवार, 19 अक्टूबर 2011
मंगलवार, 4 अक्टूबर 2011
दोस्त मेरा आजकल....
लगता है मुझको कि कोई दूसरा सा है।
दोस्त मेरा आजकल, खफा-खफा सा है।
हजार मिन्नतें मेरी यूँ नाकाम हो गयीं,
अंदाज उसका भी बिल्कुल खुदा-सा है।
गम हो या खुशी कि आँखें ढूँढ़ती उसको,
कैसे मान लूँ मैं वो मुझसे जुदा-सा है?
धड़कनें तो धड़कती हैं, हलचल नहीं कोई,
उसके बगैर दिल इक खाली मकां-सा है।
है सूखे का मौसम मगर उम्मीद कायम है,
दोस्ती के दरख्त में, एक पत्ता हरा-सा है।
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